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नीरद डोल रहे
 

 

बडे-बडे गुब्बारों जैसे
नीरद डोल रहे

कई दिनों से
धरा पिपासी
चेहरों पर भी
दिखी उदासी
श्वेत-श्वेत
बूँदों-के मोती
छन-छन बोल रहे

कृषक खुशी से
पागल होता
टैं टैं करता
मिट्ठू तोता
रात-रात भर
पपिहा रोता
दादुर बोल रहे

राग मल्हारें,
कजरी की धुन,
भौंरे गाते
गुन-गुन, गुन-गुन
बीत गया है
कब का फागुन
झूला झूल रहे

- पवन प्रताप सिंह 'पवन'
२१ जुलाई २०१४

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