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अनुभूति में ओम प्रभाकर की रचनाएँ

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इस क्षण
जैसे जैसे घर नियराया
डूब गया दिन
यह समय झरता हुआ
यहाँ से भी चलें

गीतों में-
रातें विमुख दिवस बेगाने

रे मन समझ
सरोवर है श्वसन में
हम भी दुखी तुम भी दुखी
हाथों का उठना

`

सरोवर है श्वसन में

सरोवर है
शवासन में !

हवा व्‍याकुल
गंध कन्‍धों पर धरे
वृक्ष तट के
बौखलाहट से भरे।
मूढ़ता-सी छा रही है
मृगों के मन में!

मछलियाँ बेचैन
मछुआरे दुखी
घाट-मंदिर-देवता
सारे दुखी।
दुखी हैं पशु गाँव में
तो पखेरू वन में।

सरोवर है
शवासन में!

२७ जून २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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