अनुभूति में
ओम प्रभाकर
की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
इस क्षण
जैसे जैसे घर नियराया
डूब गया दिन
यह समय
झरता हुआ
यहाँ से भी चलें
गीतों में-
रातें विमुख दिवस बेगाने
रे मन समझ
सरोवर है श्वसन में
हम भी दुखी तुम भी दुखी
हाथों का उठना
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जैसे-जैसे घर
नियराया।
बाहर बापू बैठे दीखे
लिए उम्र की बोझिल घड़ियाँ।
भीतर अम्माँ रोटी करती
लेकिन जलती नहीं लकड़ियाँ।
कैसा है यह दृश्य कटखना
मैं तन से मन तक घबराया।
दिखा तुम्हारा चेहरा ऐसे
जैसे छाया कमल-कोष की।
आँगन की देहरी पर बैठी
लिए बुनाई थालपोश की।
मेरी आँखें जुड़ी रह गईं
बोलों में सावन लहराया।
१३ जनवरी २०१४
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