अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में ओम प्रभाकर की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
इस क्षण
जैसे जैसे घर नियराया
डूब गया दिन
यह समय झरता हुआ
यहाँ से भी चलें

गीतों में-
रातें विमुख दिवस बेगाने

रे मन समझ
सरोवर है श्वसन में
हम भी दुखी तुम भी दुखी
हाथों का उठना

`

रातें विमुख दिवस बेगाने

राते विमुख दिवस बेगाने
समय हमारा,
हमें न माने!

लिखें अगर बारिश में पानी
पढ़ें बाढ़ की करूण कहानी
पहले जैसे नहीं रहे अब
ऋतुओं के रंग-
रूप सुहाने।

दिन में सूरज, रात चन्‍द्रमा
दिख जाता है, याद आने पर
हम गुलाब की चर्चा करते हैं
गुलाब के झर जाने पर।

हमने, युग ने या चीज़ों ने
बदल दिये हैं
ठौर-ठिकाने।

२७ जून २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter