अनुभूति में
ओम प्रभाकर
की रचनाएँ
नई रचनाओं में-
इस क्षण
जैसे जैसे घर नियराया
डूब गया दिन
यह समय
झरता हुआ
यहाँ से भी चलें
गीतों में-
रातें विमुख दिवस बेगाने
रे मन समझ
सरोवर है श्वसन में
हम भी दुखी तुम भी दुखी
हाथों का उठना
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हम भी दुखी तुम भी दुखी!
रातरानी रात में
दिन में खिले सूरजमुखी
किन्तु फिर भी आज कल
हम भी दुखी
तुम भी दुखी!
हम लिए बरसात
निकले इन्द्रधनु की खोज में
और तुम
मधुमास में भी हो गहन संकोच में।
और चारों ओर
उड़ती है समय की बेरूखी!
सिर्फ आँखों से छुआ
बूढ़ी नदी रोने लगी
शर्म से जलती सदी
अपना 'वरन' खोने लगी।
ऊब कर खुद मर गए
जो थे कमल सबसे सुखी।
हम भी दुखी
तुम भी दुखी।
२७ जून २०११
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