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अनुभूति में ओम प्रभाकर की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
इस क्षण
जैसे जैसे घर नियराया
डूब गया दिन
यह समय झरता हुआ
यहाँ से भी चलें

गीतों में-
रातें विमुख दिवस बेगाने

रे मन समझ
सरोवर है श्वसन में
हम भी दुखी तुम भी दुखी
हाथों का उठना

`

डूब गया दिन

डूब गया दिन
जब तक पहुँचे तेरे द्वारे।

एक धुँधलका छाया और-पास
धूप गाँव-बाहर की छूट गई,
छप्पर-बैठक सब बिल्कुल उदास
पगडंडी दरवाज़े टूट गई,
भारी था मन
हम थे काफ़ी टूटे-हारे।

सूना आँगन, सूनी तिद्वारी
तुलसी का चौरा सूना-सूना।
ऐसे सूनेपन में हमें हुआ
ख़ुद साँसें लेते में दुख दूना।
चौका-बासन
छतें, छज्जे सब अँधियारे।

धीरे-धीरे आँचल ओट किए
भीतर से दीप लिए तुम आई।
संग-संग एक मौन ज्योति-पुंज
संग-संग एक मलिन परछाईं।
सिहरा आँगन
सिहरे हम, सिहरे गलियारे।

१३ जनवरी २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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