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संख्यातीत
क्षणों में
संख्यातीत क्षणों में मेरे
कोई क्षण मेरा भी होता ?
पारस-परस
कहीं मिल जाता
उस पल को जी भर जी लेती
देहरी करे प्रतीक्षा कब से
चौखट हृदय लगाये
अलजाने ही कोई कह दे
आए वे अब आए
ऐसे पुलक
भरे क्षण को
प्रिय अनजाने जी भर जी लेती
मेरी सृष्टि प्रलय में रंजन
सपना बनकर आते-जाते
अनब्याहे सपनों की निष्ठा
पल भर अपना कह तो जाते
सिहरन, पुलकन,
आँसू धड़कन
सब अधरों पर ही सी लेती
रीत रहा जब सब मुट्ठी से
चुटकी भर रेतीला जीवन
भर पायेगा महाशून्य का
बोलो कौन
यहाँ सूनापन
दाँतों घायल इस उँगली से
सारे व्रण मैं ही सी लेती
२७ अगस्त २०१२ |