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पूछ रे मत कौन
हूँ मैं
पूछ रे मत कौन हूँ मैं
जो तुला पर
तुल न पाए, दर्द की वह टीस भर हूँ
भीड़ में भी रह गई जो अनसुनी वह चीख भर हूँ
अधर आकर मुखर हो पाये न वह
चिरमौन हूँ मैं
बँध न पाई
पाटलों में, भारवाही गंध हूँ मैं
गाँठ से खुलकर गिरी टूटी हुई सौगन्ध हूँ मैं
जो अपूरित रह गई वह कामना
फिर गौण हूँ मैं
दुःख स्वयं
शंकर बना तो, साधना भी क्या डरेगी
प्यार पूजित हो गया अम्यर्थना अब क्या करेगी
मत रचो बिरूदावली अब मत कहो
वह जो न हूँ मैं
२७ अगस्त २०१२ |