अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में निर्मला साधना की रचनाएँ-

गीतों में-
अतीत के ताने-बाने
दोष कहाँ संयम का इसमें
पूछ रे मत कौन हूँ मैं
मत उठाओ उँगलियाँ अब
संख्यातीत क्षणों में
साँसें शिथिल हुई जाती हैं
क्षोभ नहीं पीड़ा ढोयी है

 

पूछ रे मत कौन हूँ मैं


पूछ रे मत कौन हूँ मैं

जो तुला पर
तुल न पाए, दर्द की वह टीस भर हूँ
भीड़ में भी रह गई जो अनसुनी वह चीख भर हूँ
अधर आकर मुखर हो पाये न वह
चिरमौन हूँ मैं

बँध न पाई
पाटलों में, भारवाही गंध हूँ मैं
गाँठ से खुलकर गिरी टूटी हुई सौगन्ध हूँ मैं
जो अपूरित रह गई वह कामना
फिर गौण हूँ मैं

दुःख स्वयं
शंकर बना तो, साधना भी क्या डरेगी
प्यार पूजित हो गया अम्यर्थना अब क्या करेगी
मत रचो बिरूदावली अब मत कहो
वह जो न हूँ मैं

२७ अगस्त २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter