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अनुभूति में नवीन चतुर्वेदी की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
गम की ढलवान तक
जब भी
जर्रे जर्रे में मोहब्बत
न तो अनपढ़ ही रहा
बड़ी सयानी है

अंजुमन में-
अब इस दयार में
ऐलाने सहर
गनीमत से गुजारा
गाँवों से चौपाल
तमाम ख़ुश्क दयारों को
दिन निकलता है
न तो शैतान चाहिये
रूप होना चाहिये
सच्ची श्रद्धा व सबूरी
हमें एक दूसरे से

गीतों में-
चल चलें एक राह नूतन
छंदों के मतवाले हम
मजबूरी का मोल
यमुना कहे पुकार

संकलन में-
होली है- हुरियार चले बरसाने
वटवृक्ष- बरगद
खिलते हुए पलाश- खिलते हुए पलाश

` ग़म की ढलवान तक

ग़म की ढलवान तक आये तो ख़ुशी तक पहुँचे
आदमी घाट तक आये तो नदी तक पहुँचे

इश्क़ में दिल के इलाक़े से गुजरती है बहार
दर्द अहसास तक आये तो नमी तक पहुँचे

उस ने बचपन में परीजान को भेजा था ख़त
ख़त परिस्तान को पाये तो परी तक पहुँचे

उफ़ ये पहरे हैं कि हैं पिछले जनम के दुश्मन
भँवरा गुलदान तक आये तो कली तक पहुँचे

नींद में किस तरह देखेगा सहर यार मेरा
वह्म के छोर तक आये तो कड़ी तक पहुँचे

किस को फ़ुरसत है जो हर्फों की हरारत समझाय
बात आसानी तक आये तो सभी तक पहुँचे

बैठे-बैठे का सफ़र सिर्फ़ है ख़्वाबों का फ़ितूर
जिस्म दरवाज़े तक आये तो गली तक पहुँचे


२७ अप्रैल २०१५




 


 

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