अनुभूति में
नवीन चतुर्वेदी
की रचनाएँ- नई रचनाओं
में-
अब इस दयार में
ऐलाने सहर
गनीमत से गुजारा
तमाम ख़ुश्क दयारों को
सच्ची श्रद्धा व सबूरी
अंजुमन में-
गाँवों से चौपाल
दिन निकलता है
न तो शैतान चाहिये
रूप होना चाहिये
हमें एक दूसरे से
गीतों में-
चल चलें एक राह नूतन
छंदों के मतवाले हम
मजबूरी का मोल
यमुना कहे पुकार
संकलन में-
होली है-
हुरियार चले बरसाने
वटवृक्ष-
बरगद
खिलते हुए पलाश-
खिलते हुए पलाश |
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गनीमत से गुजारा
ग़नीमत से गुजारा कर रहा हूँ
मगर चर्चा है जलसा कर रहा हूँ
ख़ुदाई तुझसे तौबा कर रहा हूँ
बदन का रंग नीला कर रहा हूँ
ठहरना तक नहीं सीखा अभी तक
अजल से वक़्त जाया कर रहा हूँ
तसल्ली आज भी है फ़ासलों पर
सराबों का ही पीछा कर रहा हूँ
मेरा साया मेरे बस में नहीं है
मगर दुनिया पे दावा कर रहा हूँ
३ मार्च २०१४
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