अनुभूति में
नवीन चतुर्वेदी
की रचनाएँ- नई रचनाओं
में-
अब इस दयार में
ऐलाने सहर
गनीमत से गुजारा
तमाम ख़ुश्क दयारों को
सच्ची श्रद्धा व सबूरी
अंजुमन में-
गाँवों से चौपाल
दिन निकलता है
न तो शैतान चाहिये
रूप होना चाहिये
हमें एक दूसरे से
गीतों में-
चल चलें एक राह नूतन
छंदों के मतवाले हम
मजबूरी का मोल
यमुना कहे पुकार
संकलन में-
होली है-
हुरियार चले बरसाने
वटवृक्ष-
बरगद
खिलते हुए पलाश-
खिलते हुए पलाश |
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चल चलें इक
राह नूतन
चल चलें इक राह नूतन
भय न किंचित
हो जहाँ पर
पल्लवित सुख
हो निरंतर
अब लगाएं
हम वहीँ पर
बन्धु - निज आसन
द्वेष - ईर्ष्या
को न प्रश्रय
दुर्गुणों की
हो पराजय
हो जहाँ बस
प्रेम की जय
खिल उठे तन मन
२५ जुलाई २०११ |