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नई रचनाओं में-
अब इस दयार में
ऐलाने सहर
गनीमत से गुजारा
तमाम ख़ुश्क दयारों को
सच्ची श्रद्धा व सबूरी

अंजुमन में-
गाँवों से चौपाल
दिन निकलता है
न तो शैतान चाहिये
रूप होना चाहिये
हमें एक दूसरे से

गीतों में-
चल चलें एक राह नूतन
छंदों के मतवाले हम
मजबूरी का मोल
यमुना कहे पुकार

संकलन में-
होली है- हुरियार चले बरसाने
वटवृक्ष- बरगद
खिलते हुए पलाश- खिलते हुए पलाश

 

छंदों के मतवाले हम

छंदों के मतवाले हम
है प्यार हमें भाषाओं से
प्रारूपों के रखवाले हम

कहना सुनना
चिंतन सुमिरन
पढ़ना लिखना
अपना जीवन
तुलसी की धरती पर जन्मे
कबिरा के घरवाले हम
छंदों के मतवाले हम

बिम्ब हमारी
ख़ास धरोहर
जोर हमारा
परिवर्तन पर
साहित की सेवा करने को
बैठे - लंगर डाले हम
छंदों के मतवाले हम

२५ जुलाई २०११

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