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अनुभूति में नवीन चतुर्वेदी की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अब इस दयार में
ऐलाने सहर
गनीमत से गुजारा
तमाम ख़ुश्क दयारों को
सच्ची श्रद्धा व सबूरी

अंजुमन में-
गाँवों से चौपाल
दिन निकलता है
न तो शैतान चाहिये
रूप होना चाहिये
हमें एक दूसरे से

गीतों में-
चल चलें एक राह नूतन
छंदों के मतवाले हम
मजबूरी का मोल
यमुना कहे पुकार

संकलन में-
होली है- हुरियार चले बरसाने
वटवृक्ष- बरगद
खिलते हुए पलाश- खिलते हुए पलाश

`

रूप होना चाहिये

रूप होना चाहिए, आकार होना चाहिए
हर अना, हर सोच का आधार होना चाहिए

रंग-मस्ती-रोशनी, इसमें भला क्या कुछ नहीं
ज़िंदगी का नाम तो त्यौहार होना चाहिए

गर तना कमज़ोर हो तो, बढ़ नहीं पाता दरख़्त
फ़लसफ़ा तालीम का दमदार होना चाहिए

भीड़ में शामिल रहे पर भीड़ से हट कर दिखे
शख्सियत का रंग दर्ज़ेदार होना चाहिए

चेतना-संवेदना, 'शापित अहिल्या' बन गयीं
फिर से कोई 'राम' सा अवतार होना चाहिए

१२ दिसंबर २०११

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