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(एक)
होरी खेलिवे कों हुरियार चले बरसाने,
संग लिएँ ग्वाल-बाल हुल्लड़ मचामें हैं
टेसू के फूलन कों पानी में भिगोय कें फिर,
भर भर पिचकारी रंगन उडामें हैं
संगत के सरारती संगी सहोदर कछू,
गोपिन कों घेर गोबर में हू डुबामें हैं
कूद कूद जामें और बरसाने पौंचते ही
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं
(दो)
महीना पच्चीस दिन दूध पिएं घी हू खामें
जाय कें अखाडें डंड बैठक लगामें हैं
इहाँ-उहाँ जहाँ जायँ, इतरायँ, भाव खायँ
नुक्कड़-अथाँइन पे गाल हू बजामें हैं
पिछले बरस कौ यों बदलौ लेंगे अचूक
यों-त्यों कर दंगे ऐसी योजना बनामें हैं
कूद कूद जामें और बरसाने पौंचते ही
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं-
नवीनचंद्र चतुर्वेदी
१४ मार्च २०११ |