अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

होली है!!

 

हुरियार चले बरसाने

(एक)

होरी खेलिवे कों हुरियार चले बरसाने,
संग लिएँ ग्वाल-बाल हुल्लड़ मचामें हैं
टेसू के फूलन कों पानी में भिगोय कें फिर,
भर भर पिचकारी रंगन उडामें हैं
संगत के सरारती संगी सहोदर कछू,
गोपिन कों घेर गोबर में हू डुबामें हैं
कूद कूद जामें और बरसाने पौंचते ही
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं



(दो)

महीना पच्चीस दिन दूध पिएं घी हू खामें
जाय कें अखाडें डंड बैठक लगामें हैं
इहाँ-उहाँ जहाँ जायँ, इतरायँ, भाव खायँ
नुक्कड़-अथाँइन पे गाल हू बजामें हैं
पिछले बरस कौ यों बदलौ लेंगे अचूक
यों-त्यों कर दंगे ऐसी योजना बनामें हैं
कूद कूद जामें और बरसाने पौंचते ही
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं

- नवीनचंद्र चतुर्वेदी
१४ मार्च २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter