सुबह
रोशनी के नए झरने
लगे धरती पर उतरने
क्षितिज के तट पर धरा है
ज्योति का जीवित घड़ा है
लगा घर-घर में नए
उल्लास का सागर उमड़ने
घना कोहरा दूर भागे
गाँव जागे, खेत जागे
पक्षियों का यूथ निकला
ज़िंदगी की खोज करने
धूप निकली, कली चटकी
चल पड़ी हर साँस अटकी
लगीं घर-दीवार पर फिर
चाह की छवियाँ उभरने
चलो, हम भी गुनगुनाएँ
हाथ की ताकत जगाएँ
खिले फूलों की किलक से
चलो, माँ की गोद भरने
24 अगस्त 2006 |