आकाश नीला
देखिए, उस पार
थऱ-थऱ काँपता आकाश नीला!
हाँ वही आकाश
जिसमें सुबह का सूरज उगा था
खोलकर पर उड़ानें भरने लगा
हारिल-सुगा था
जानिए
क्यों हो गया है यह समय
बकवास नीला!
क्यों गए हैं वनपखेरू
भूल, खुलकर चहचहाना
है बिसारा डरे बच्चे के
अधर ने मुस्कराना
क्या न है यह मुक्ति के
अहसास का उपहास नीला!
तुम न जाने क्यों
घृणा से देखते हो राजपथ को
और मुट्ठी तानकर दुहरा रहे
पिछली शपथ को
हो गया तब्दील पतझर में
अगर मधुमास नीला!
४ जनवरी २०१० |