रात
पाखी
लौट घरों को आए
अंधकार ने पर फैलाए
थकन मिटाने को
दिन भर की
सोयीं आँखें
गाँव-नगर की
घर, आँगन, छप्पर अलसाए
अंधकार ने पर फैलाए
जागी
दुनिया आसमान की
अगवानी करने
विहान की
तारों के मुखड़े मुस्काए
अंधकार ने पर फैलाए
नई
उमंग लिए आएँगे
श्रम के गीत
पुन: गाएँगे
धरती के बेटे तरुणाए
अंधकार ने पर फैलाए
24 अगस्त 2006
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