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अनुभूति में महेश अनघ की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अहा बुद्धिमानों की बस्ती
इति नहीं होती
कुछ न मिला
कौन है
गुस्सा कर भौजी
जब जब मेरी विश्वविजय
तप कर के हम
थोड़ी अनबन और उदासी
मुहरबंद हैं गीत
मैराथन में है भविष्य
शब्द शर वाले धनुर्धर
शब्दों में सतयुग की खुशबू
स्वर्णमृग लेने गए थे

गीतों में-
चैक पर लिख दूँ रकम
पत्थर दिल दुनिया
बटवारा कर दो ठाकुर
मची हुई सब ओर खननखन
मूर्तिवाला

हम भी भूखे

संकलन में-
वर्षा मंगल- मेह क्या बरसा

 

 

 

मूर्तिवाला

मूर्तिवाला शारदे को हथौड़े से पीटता है
एक काले दिन

कलमुँही तू दो टके की क्यों गई थी कार में
क्या वहाँ साधक मिलेंगे सेठ में सरकार में
खंडिता हो लौट आई हाथ में बख्शीस लेकर
पर्व वाले दिन

तू फ़कीरों कबीरों के वंश की संतान है
साहबों की साज सज्जा के लिए सामान है
इसलिए कच्चे घरों में ओट देकर तुझे पाला
और टाले दिन

कामना थी पाँव तेरे महावर से माँड़ते
फिर किसी दिन पूज्य स्वर से सात फेरे पाड़ते
क्या करें ऊँचे पदों ने पद दलित कर छंद सारे
मार डाले दिन

९ नवंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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