अनुभूति में
महेश अनघ की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अहा बुद्धिमानों की बस्ती
इति नहीं होती
कुछ न मिला
कौन है
गुस्सा कर भौजी
जब जब मेरी विश्वविजय
तप कर के हम
थोड़ी अनबन और उदासी
मुहरबंद
हैं गीत
मैराथन
में है भविष्य
शब्द शर वाले धनुर्धर
शब्दों
में सतयुग की खुशबू
स्वर्णमृग लेने गए थे
गीतों में-
चैक पर लिख दूँ रकम
पत्थर दिल दुनिया
बटवारा कर दो ठाकुर
मची हुई सब ओर खननखन
मूर्तिवाला
हम भी भूखे
संकलन में-
वर्षा मंगल-
मेह क्या बरसा
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मैराथन में है
भविष्य मैराथन में हैं
भविष्य जी
उम्र पाँच, कद पौने तीन
आँखों में आकाश आषाढी
सेब गाल, कच भंवरीले
तन में गोकुल गंध
चाल दुलकी, नथुने गीले-गीले
कसी हुई नवनीत पीठ पर
मैकाले की पुख्ता जीन
तख्ती पर कुर्सी छापी
फिर रुपया, रुतबा, रौब लिखा
तब से ही तोता रटंत में
ज्यादा-ज्यादा जोश दिखा
तन्खैय्या टीचर
ट्यूशन में मीठे, कक्षा में नमकीन
पाँच रोज झंडा माता की
जय जय का अभ्यास किया
छठवें दिन नाचे-गाये
तब मुख्य अतिथि ने पास किया
खेले खाए तो चपरासी
पढ़े गए
अमरीका चीन
१० दिसंबर २०१२ |