बटवारा कर दो
ठाकुर
बँटवारा कर दो ठाकुर।
तन मालिक का धन सरकारी
मेरे हिस्से परमेसुर।
शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ
सड़कें दे दो
झंडों को
पर्वत कूटनीति को अर्पित
तीरथ दे दो
पंडों को।
खीर खांड ख़ैराती खाते
हमको गौमाता के खुर
सब छुट्टी के दिन साहब के
सब उपास
चपरासी के
उसमें पदक कुँअर जू के हैं
खून पसीने
घासी के
अजर अमर श्रीमान उठा लें
हमको छोड़े क्षण भंगुर
पंच बुला कर करो फ़ैसला
चौड़े चौक
उजाले में
त्याग तपस्या इस पाले में
राजभोग
उस पाले में
दीदे फाड़-फाड़ सब देखें
हम देखेंगे टुकुर-टुकुर
९ नवंबर २००९ |