अनुभूति में
महेश अनघ की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अहा बुद्धिमानों की बस्ती
इति नहीं होती
कुछ न मिला
कौन है
गुस्सा कर भौजी
जब जब मेरी विश्वविजय
तप कर के हम
थोड़ी अनबन और उदासी
मुहरबंद
हैं गीत
मैराथन
में है भविष्य
शब्द शर वाले धनुर्धर
शब्दों
में सतयुग की खुशबू
स्वर्णमृग लेने गए थे
गीतों में-
चैक पर लिख दूँ रकम
पत्थर दिल दुनिया
बटवारा कर दो ठाकुर
मची हुई सब ओर खननखन
मूर्तिवाला
हम भी भूखे
संकलन में-
वर्षा मंगल-
मेह क्या बरसा
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मुहरबंद हैं गीत
मुहरबंद हैं गीत
खोलना दो हजार सत्तर में
जब पानी चुक जाये
धरती सागर आँखों का
बोझ उठाये नहीं उठे
पंछी से पाँखों का
नानी का बटुआ
टटोलना दो हजार सत्तर में
इसमें विपुल वितान तना है
मान के आँचल का
सारी अला-बला का मंतर
टीका काजल का
नौ लाख डालर संग तोलना
दो हजार सत्तर में
छूटी आस जुड़ाएगी
ये टूटी हुई कसम
मन के मैले धागों का
ये रामबाण मरहम
मिल जाये तो शहद
घोलना दो हजार सत्तर में
जब सीमा विवाद उलझे
रेतीले अंधड़ से
सती प्यास का पता पूछना
लाल बुझक्कड़ से
चार शब्द लयबद्ध बोलना
दो हजार सत्तर में
१० दिसंबर २०१२ |