अनुभूति में
महेश अनघ की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अहा बुद्धिमानों की बस्ती
इति नहीं होती
कुछ न मिला
कौन है
गुस्सा कर भौजी
जब जब मेरी विश्वविजय
तप कर के हम
थोड़ी अनबन और उदासी
मुहरबंद
हैं गीत
मैराथन
में है भविष्य
शब्द शर वाले धनुर्धर
शब्दों
में सतयुग की खुशबू
स्वर्णमृग लेने गए थे
गीतों में-
चैक पर लिख दूँ रकम
पत्थर दिल दुनिया
बटवारा कर दो ठाकुर
मची हुई सब ओर खननखन
मूर्तिवाला
हम भी भूखे
संकलन में-
वर्षा मंगल-
मेह क्या बरसा
|
|
कुछ न मिला
कुछ न मिला जब धनुर्धरों से
बंशी वारे से
हार हूर कर माँग रहे हैं
भील -भिलारे से
ला चकमक तो दे
चिंतन में आग लगाना है
थोड़ी सी किलकारी दे
बच्चे बहलाना है
कैसे डरे डरे बैठे हैं
अक्षर कारे से
हम पोशाकें पहन
पिघलते रहते रखे रखे
तूने तन मन कैसे साधा
नंगमनंग सखे
हमको भी चंगा कर
गंडा, बूटी, झारे से
हम कवि हैं
चकोरमुख से अंगार छीनते हैं
बैठे-ठाले शब्दकोष के
जुएँ बीनते हैं
मिले तिलक छापे
गुरुओं के पाँव पखारे से
एक बददुआ सी है मन में
कह दें तो बक दूँ
एक सेर महुआ के बदले
गोरी पुस्तक दूँ
हमें मिला सो तू भी पा ले
ज्ञान उजारे से
१० दिसंबर २०१२ |