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अनुभूति में डॉ. जयजयराम आनंद की रचनाएँ-

नए दोहों में-
सन्नाटे में गाँव

दोहों में-
ताल ताल तट पर जमे
प्रदूषण और वैश्विक ताप

गीतों में-
अम्मा बापू का ऋण
आम नीम की छाँव
आँखों में तिरता है गाँव
केवल कोरे कागज़ रंगना
बहुत दिनों से
भूल गए हम गाँव
मेरे गीत
शहर में अम्मा

सुख दुख इस जीवन में
 

 

ताल ताल तट पर 

ताल ताल तट पर जमे, बगुले पहरेदार
डर डर कर सब मछरियाँ, क्यों ना हों बीमार

आज़ादी जब से मिली, घर-आँगन दीवार
राम रहीमा बीच में, खड़ी रोज़ तकरार

बिषधर बीन बजा रहे, रहे सपेरे नाच
भूल गए सब चौकड़ी, तन मन रही न आँच

शैल शिखर की भव्यता, तन मन हुआ विभोर
नीरवता शासन करे, जिसका ओर न छोर

भावुक मन रोके नहीं, रुदन क्षोभ उल्लास
जन मन की अंतर्कथा, आँसू को अहसास

इधर उधर सब ओर ही, फैला भष्टाचार
समझाऊँ कैसे किसे, क्या है शिष्टाचार

दुनिया में कुछ फितरती, कभी न मानें भूल
तिनके जैसी बात को, देते रहते तूल

सच बोलें तो हारते, हरिश्चन्द्र से मीत
झूठ बोलकर दूसरे, बाजी लेते जीत

महँगी रोटी हो गयी, सस्ते हैं अब यान
नर नारी रोबोट से, कलियुग की पहिचान

समय नहीं अब रह गया, खाओ मिलजुल खीर
इधर उधर फैली हुई, पर्वत जैसी पीर

३१ मई २०१०

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