अनुभूति में
डॉ. जयजयराम आनंद की रचनाएँ-
नए दोहों में-
सन्नाटे में गाँव
दोहों में-
ताल ताल तट पर जमे
प्रदूषण और वैश्विक ताप
गीतों में-
अम्मा बापू का ऋण
आम नीम की छाँव
आँखों में तिरता है गाँव
केवल कोरे कागज़ रंगना
बहुत दिनों से
भूल गए हम गाँव
मेरे गीत
शहर में
अम्मा
सुख दुख
इस जीवन में
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सन्नाटे में गाँव
बाग बगीचे गाँव में, खो बैठे पहचान
आम जाम जामुन हुए, बाज़ारों की शान
पीपल बरगद नीम ने, खींच लिए हैं हाथ
हमने ही जबसे दिया, नीलामी का साथ
ताल तलैया नहर के, बदल गए हैं पाट
अन्धकार में रौशनी, लिए गाँव में हाट
गायब सब पगडंडियाँ, खा चकबंदी मार
सड़कें जोडें गाँव के, अब शहरों से तार
सड़क गाँव को ले गई, फुटपाथों की छाँव
संन्नाटे में भटकते, छानी छप्पर गाँव
अत पात पीले झरे, खड़े पेड़ सब ठूँठ
जगर मगर सब शहर की, गयी गाँव से रूठ
ठिठुर ठिठुर ठंडा हुआ, होरी धनिया गाँव
रातरात भर तापता, जान बचाय अलाव
घर आँगन बरसात में, कीचड दलदल गाँव
पछताते नर नारियाँ, जामे रोग के पाँव
जमींदार खोखल हुए, बेचें खाएँ खेत
धन दौलत इज्ज़त हुई, ज्यों मुठ्ठी में रेत
जिनके घर में थी नहीं, कौडी भूँजी भाँग
हाथ पसारे गाँव की, पूरी करते माँग
भूमिहीन हैं गाँव में, ऋण से लदे किसान
दानों को मुहताज है, संकट में ईमान
बाँग न मुर्गों की मिले, बन बागन में मोर
जकड़े सारे गाँव को, बाघ भेड़िया शोर
घर आँगन खलियान का, बदल गया भूगोल
गली गली में डोलता, राजनीति भूडोल
टॉप तमंचा गोलियाँ, घर घर चौकीदार
पकड़ फिरौती माँग में, शामिल रिश्तेदार
कहाँ न जाने खो गए, रेशम से सम्बन्ध
खान पान अनुराग के, भंग हुए अनुबंध
३१ मई २०१०
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