अनुभूति में
डॉ. जयजयराम आनंद की रचनाएँ-
नए दोहों में-
सन्नाटे में गाँव
दोहों में-
ताल ताल तट पर जमे
प्रदूषण और वैश्विक ताप
गीतों में-
अम्मा बापू का ऋण
आम नीम की छाँव
आँखों में तिरता है गाँव
केवल कोरे कागज़ रंगना
बहुत दिनों से
भूल गए हम गाँव
मेरे गीत
शहर में
अम्मा
सुख दुख
इस जीवन में
|
|
प्रदूषण और
वैश्विक ताप
करते वातावरण विद, खरा खरा ऐलान
प्रलय बाढ़ ने कस लिए, अपने तीर कमान
आतंकी का रूप धर, आया वैश्विक ताप
छोटे मोटे द्वीप तट, झेल रहे अभिशाप
भूल गया पारा अरे, परम्परागत चाल
बैरोमीटर की कहीं, अब ना गलती दाल
हवा हवा की निकलती, हुई हवा हैरान
लूह लपट के रूप में, बनी क्रूर शैतान
दलने छाती पर लगीं, रवि किरणें जब दाल
तापमान के आन की काम न आये ढाल
बर्फ ध्रुवों की पिघलती, धरे भैरवी रूप
पशु पंछी इन्सान के, रही नहीं अनुरूप
वाहन ढेरों, चिमानियाँ, उगल रहे अभिशाप
पर्दूषण भूगोल का, हुआ असीमित माप
वन उपवन के गाँव में, कंकरीट की बाढ़
मरुथल पाँव पसारता, मिटे झाड झंखाड़
पानी पानी हो गए, अब जलधर के ठाट
माथा अपना ठोकते, कुआँ बाबड़ी घाट
भ्रष्टाचारी प्रदूषण, रचे नया इतिहास
सब दुनिया को हो गया, खरा खरा अहसास
ग्रीनहाउस के छेद का, बदल रहा भूगोल
थमीं नहीं यदि चाल तो, आएगा भूडोल
घोर प्रदूषण यातना, हम सबका है पाप
आने वाली पीदियाँ, भोगेगी अभिशाप
|