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अनुभूति में डॉ. जयजयराम आनंद की रचनाएँ-

नए दोहों में-
सन्नाटे में गाँव

दोहों में-
ताल ताल तट पर जमे
प्रदूषण और वैश्विक ताप

गीतों में-
अम्मा बापू का ऋण
आम नीम की छाँव
आँखों में तिरता है गाँव
केवल कोरे कागज़ रंगना
बहुत दिनों से
भूल गए हम गाँव
मेरे गीत
शहर में अम्मा

सुख दुख इस जीवन में
 

 

अम्मा बापू का ऋण

अम्मा ने हाथ धरा सर पर
बापू ने चलना सिखलाया

घर से बाहर पाँव हिलाए
भूलभुलैयों ने भरमाया
अपनों को तो जहाँ कहीं भी
बिन पेंदी का लोटा पाया
अम्मा ने ध्यान दिया मुझ पर
बापू जी ने गुर रटवाया

क्रूर काल के हाथों ने जब
जीवन पथ का साथी छीना
दुःख-दर्दों के षड्यंत्रों ने
पलपल का सुख चुनचुन बीना
अम्मा ने भार लिया सर पर
बापू ने धीरज बँधवाया

जाते जाते छोड़ गए वे
अजर अमर पद चिन्ह अनूठे
महामंत्र गीता पुराण के
लगते उनके सम्मुख झूठे
मेरा दिल अम्मा के दिल-सा
तन मेरा बापू प्रतिछाया

१५ जून २००९

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