अनुभूति में
डॉ. जयजयराम आनंद की रचनाएँ-
नए दोहों में-
सन्नाटे में गाँव
दोहों में-
ताल ताल तट पर जमे
प्रदूषण और वैश्विक ताप
गीतों में-
अम्मा बापू का ऋण
आम नीम की छाँव
आँखों में तिरता है गाँव
केवल कोरे कागज़ रंगना
बहुत दिनों से
भूल गए हम गाँव
मेरे गीत
शहर में
अम्मा
सुख दुख
इस जीवन में
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आम नीम की छाँव
चलते चलते जब थक जाओ
सुस्ता लेना मेरे भैया
बरगद, नीम, आम की छाँव
जेठ मास की तपी दुपहरी
आग उगलता हो जब सूरज
पंछी हर नर नारी की
बारा बजा रही हो सूरत
हाथ पाँव फूले छाता के
तब सुस्ताना मेरे भैया
राह किनारे मेरा गाँव!
अपने घर का पता बता दूँ
द्वारे का नकशा समझा दूँ
चबूतरे पर छाँव घनेरी
शिमला नैनीताल दुपहरी
तन मन थक हो चकनाचूर
तब सुस्ताना मेरे भैया
ले देना, बस, मेरा नाँव!
अम्मा बापू घर न मिलेगें
हार खेत खलिहान ठिकाना
अय्या बाबा पके आम हैं
खुश होंगें उनसे बतियाना
मन में उठे सवाल पूछना
जी भर कर सुस्ताना भैया
फिर चल देना अपने ठाँव!
१५ जून २००९
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