अनुभूति में
गिरि मोहन गुरु की
रचनाएँ—
नयी रचनाओं में-
अतिथि देवो भव
आलस के नाम
झाँकता बचपन
नये सपने
यादों के हंस
गीतों में—
सभा थाल
पत्ते पीत हुए
बूँदों के गहने
मंगल कलश दिया माटी के
कंठ सूखी नदी
उमस का गाँव
कामना की रेत
अंजुमन में—
एक पौधा
फूल के दृग में उदासी
दोहों में—
दोहों में व्यंग्य
संकलन में—
धूप के पाँव-
आग का जंगल
नया साल-
नए
वर्ष का गीत
अमलतास-
अमलताश के फूल
प्रेम कविताएँ-
मानिनी गीत
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झाँकता बचपन
कोपलों ने फिर किया जादू
खिलखिलाया ठूँठ का आँगन
मृदु पवन ने देह सहलाई
किरन ने गुदगुदाया
खिलौने बनकर विहंग-
का झुण्ड आया
शाख आई पात आये
झाँकने फिर से लगा बचपन
स्वप्न ने अँगड़ाइयाँ लीं
सुगबुगाई आस
जिन्दगी की बन गई
पहचान नूतन प्यास
गीत आये मीत आये
दूर तक दिखता न सूनापन
१५ मार्च २०१७
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