अनुभूति में
गिरि मोहन गुरु की
रचनाएँ—
गीतों में—
सभा थाल
पत्ते पीत हुए
बूँदों के गहने
मंगल कलश दिया माटी के
कंठ सूखी नदी
उमस का गाँव
कामना की रेत
अंजुमन में—
एक पौधा
फूल के दृग में उदासी
दोहों में—
दोहों में व्यंग्य
संकलन में—
धूप के पाँव-
आग का जंगल
नया साल-
नए
वर्ष का गीत
अमलतास-
अमलताश के फूल
प्रेम कविताएँ-
मानिनी गीत
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उमस का गाँव
लू की नदी
किनारे पर है
एक उमस का गाँव
पानी का अभाव जैसे
सच्चाई का व्यवहार
स्वेद बहुत सस्ता जैसे
हो रिश्वत का बाजार
सभी कह रहे बालू में ही
खींचो अपनी नाव
कुएँ हुए अंधे जैसे
हों
चौपालों का न्याय
अंधड़ जैसे चले गाँव में
मुखिया जी की राय
पवन कि जैसे भोले–भालों
का न कहीं पर ठाँव
लू की नदी किनारे पर
है
एक उमस का गाँव
16 अक्तूबर 2007
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