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नव वर्ष अभिनंदन
2007

    नए वर्ष का गीत

 

किरण किन्नरी कंठ गा उठा
नए वर्ष का गीत।

सृजित ऋचाएँ हुई कर्म की
सूक्त साहसी स्वर के
चलने लगा साथ भागीरथ
श्रम जाह्नवी लहर के
हर्ष वैध स्पर्श प्राप्त कर
शोकरोग भय भीत।

किरण किन्नरी कंठ गा उठा
नए वर्ष का गीत।

मूल मंत्र उच्चरित दिशाएँ
करती उपनिषदों के
स्वप्न सत्य की भू पर
आने को हैं वेद विदों के
वसुधा एक कुटुंब हिलोरें

लेती अंतस प्रीत।

किरण किन्नरी कंठ गा उठा
नए वर्ष का गीत।

पं. गिरिमोहन गुरु

 

नववर्ष की शुभकामना

है लालिमा सारे भुवन में मोहनी
लो सूर्य नूतन वर्ष का उगने को है
मन
कोक कोमल नीड़ को अब त्यागकर
हो मुक्त अंबर में खड़ा उड़ने को है

अब छोड़ बीते साल की वो वेदना
तू छूट दुविधाओं के इस भुजपाश से
कर
आचमन तू आज अपने तेज का
सौभाग्य बन जो आ रहा आकाश से

अब दीप आशा के सदा जलने को हैं
जल कुमुद
खुशियों के भी खिलने को हैं
जो कामनाएँ की थीं जीवन में कभी
वे सत्य में साकार सब ढलने को हैं

दिन सदा होली के रंग भरते रहें
हर दिवाली के दिये जलते रहे
और मेरी कामना के फल सदा
हर वर्ष मंगलमय सुखद करते रहें

रिपुदमन पचौरी

नए साल के साथ

टूटी झोपड़ी के झरोखे से
नए घर के आसार देखता हूँ
नए साल के साथ आए उमंगें
उत्साह और प्यार देखता हूँ

इस वर्ष जो बीत गया
वो अब बात पुरानी है
कामयाबी हो या नाकामी
वो अब महज़ कहानी है।

सुखद भूमि में बीज रोप कर
कोपलों के आसार देखता हूँ।
नए साल के साथ आए उमंगें
उत्साह और प्यार देखता हूँ।

रवीश रंजन

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