हरे-हरे पत्ते दे पाये
क्षणिक हृदय हरियाली
चली समय की आँधी ऐसी
नग्न हुई हर डाली
सतत समस्यायी शूलों में
उलझे रहे दुकूल. . .
इधर पीलिया, उधर खिल गए
अमलताश के फूल. . .
काँव-काँव का गाँव साथ ही
कोयल वाली कूक
मिलने और बिछुड़ने वाली
उठी साथ ही हूक
समय दे रहा रह-रह गच्चा
हुई कहाँ पर भूल. . .
इधर पीलिया, उधर खिल गए
अमलताश के फूल. . .
गिरि मोहन गुरु
16 जून 2007 |