अनुभूति में
गिरि मोहन गुरु की
रचनाएँ—
गीतों में—
सभा थाल
पत्ते पीत हुए
बूँदों के गहने
मंगल कलश दिया माटी के
कंठ सूखी नदी
उमस का गाँव
कामना की रेत
अंजुमन में—
एक पौधा
फूल के दृग में उदासी
दोहों में—
दोहों में व्यंग्य
संकलन में—
धूप के पाँव-
आग का जंगल
नया साल-
नए
वर्ष का गीत
अमलतास-
अमलताश के फूल
प्रेम कविताएँ-
मानिनी गीत
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कामना की
रेत
जून की तपती
किरन–सा
मन
आहटों से भी उफनता
मिल रहा संकेत
भुंज रही है भाड़–सी
उर–कामना की रेत
ज्यों दुपहरी भर रखा हो धूप में
बर्तन
जून की तपती किरन–सा
मन
फूल पत्तों को न
बाँटे आ रहा
जो दे रहा है मूल
साहसी छाता तना है शीश पर
लेकिन फिजूल
आँजती है साँझ को भी धूप की
खुरचन।
जून की तपती किरन–सा
मन
16 अक्तूबर 2007
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