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अनुभूति में गिरि मोहन गुरु की रचनाएँ—

गीतों में—
सभा थाल
पत्ते पीत हुए
बूँदों के गहने
मंगल कलश दिया माटी के
कंठ सूखी नदी

उमस का गाँव
कामना की रेत

अंजुमन में—
एक पौधा
फूल के दृग में उदासी

दोहों में—
दोहों में व्यंग्य

संकलन में—
धूप के पाँव- आग का जंगल
नया साल- नए वर्ष का गीत
अमलतास- अमलताश के फूल
प्रेम कविताएँ- मानिनी गीत

 

दोहों में व्यंग्य

फटे शर्ट से पूछते साड़ी के पैबंद।
छल छंदों की जगह पर कब आएँगे छंद।।

राजनीति के नगर की शालाओं के कृत्य।
शिक्षक झाड़ू मारते कुर्सी पर हैं भृत्य।।

अपने अपने दायरे अपने-अपने दाँव।
कोई कुर्सी पकड़ता कोई पकड़ता पाँव।।

महाराष्ट्र सौराष्ट्र क्या आज समूचा राष्ट्र।
कुरुक्षेत्र का क्षेत्र है घर घर में धृतराष्ट्र।।

शहरों में नेता बड़े गाँवों में सरपंच।
दोनों के घर मिलेंगे पंच और प्रपंच।।

हमको मतलब मतों से हम मतलबिये यार।
फिर कैसे कर पाएँगे अन्य मतों से प्यार।।

पैसा पद और प्रतिष्ठा पुरस्कार सम्मान।
प्रजातंत्र में हो गए चमचों को आसान।।

गीतों में लाया बहुत नियति नदी के बिंब।
जब जब भी देखा मिला तेरा ही प्रतिबिंब।।

पैसा पद और प्रतिष्ठा पुरस्कार सम्मान।
प्रजातंत्र में हो गए चमचों को आसान।।

गीतों में लाया बहुत नियति नदी के बिंब।
जब जब भी देखा मिला तेरा ही प्रतिबिंब।।

16 अक्तूबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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