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प्रेम कविताएँ- मानिनी गीत

 

आलस के नाम

आलस के नाम गया दिन
रातें अँगड़ाइयाँ हुईं

स्वप्निल-स्वेटर हाथों में
बुनते उधेड़ते रहे
तट पर आने के पहले
लहरों को छेड़ते रहे

जितने गहरे उतरे हम
उतनी गहराइयाँ हुईं

फूलों का मुरझाना देख
आँखों को मूँदते रहे
सत्य के धरातल पर आ
काँटों से जूझते रहे

गीतों का चेहरा धूमिल
हावी परछाइयाँ हुईं

१५ मार्च २०१७

 

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