अनुभूति में डॉ. अजय पाठक की
रचनाएँ- नए गीत-
उज्जयिनी में
कहो सुदामा
फागुन के दिन
जीने का अभ्यास
सौ-सौ चीते
गीतों में
अनुबंध
आदमखोर हवाएँ
कबिरा तेरी चादरिया
कुछ तेरे, कुछ
मेरे
गाँव
चारों धाम नहीं
चिरैया धीरे धीरे बोल
जीना हुआ कठिन
जोगी
दर्द अघोरी
पुरुषार्थ
बादल का पानी
भोर तक
मौन हो गए
यामिनी गाती है
सफलता खोज
लूँगा
समर्पित शब्द की रोली
हम हैं बहता पानी बाबा
संकलन में
नव
सुमंगल गीत गाएँ
महुए की डाली पर उतरा वसंत
बादल
का पानी
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उज्जयिनी में
उज्जयिनी में भेष बदलकर
घूम रहा बेताल।
नये-नये विक्रम को ढूँढे
उनको रोज तलाशे
वाग्जाल में उलझाकर वह
हर विक्रम को फाँसे
उनके सिर के टुकड़े कर दे
और खींच ले खाल।
भूखे अधनंगे लोगों को
सब्जबाग दिखलाये
धर्म-कर्म की बात बता कर
आपस में लड़वाये
रोजी रोटी का झाँसा दे
चले सियासी चाल।
कहता है कि तुम राजा हो
हम हैं दास तुम्हारे
तुम हो तो अस्तित्व हमारा
पालनहार हमारे
दिल में दिल्ली और दृष्टि में
बसा हुआ भोपाल।
राजदंड धारण कर बैठेगा
वह राजभवन में
गूँजेगा जयगान उसी का
धरती और गगन में
लक्ष्मी उसकी दासी होगा
रक्षक भैरव-काल।
१ अक्तूबर २०१२ |