गाँव
पगडंडी पर छाँवों जैसा कुछ भी नही
दिखा,
गाँवों में अब गाँवों जैसा कुछ भी नहीं दिखा।
कथनी सबकी कड़वी-कड़वी, करनी
टेढ़ी-टेढ़ी,
बरकत और दुआओं जैसा कुछ भी नहीं दिखा।
बिछुआ, पैरी, लाल महावर, रुनझुन
करती पायल,
गोरे-गोरे पाँवों जैसा कुछ भी नहीं दिखा।
राधा, मुनिया, धनिया, सीता जींस
पहनती है,
उनमें शोख अदायों जैसा कुछ भी नहीं दिखा।
बरगद, इमली, महुआ, पीपल, शीशम
लुप्त हुए,
शीतल मंद हवाओं जैसा कुछ भी नहीं दिखा।
पंचायत में राजनीति की गहरी पैठ
हुई,
तब से ग्राम-सभाओं जैसा कुछ भी नहीं दिखा।
16 अप्रैल 2007 |