अनुभूति में डॉ. अजय पाठक की
रचनाएँ- नए गीत-
उज्जयिनी में
कहो सुदामा
फागुन के दिन
जीने का अभ्यास
सौ-सौ चीते
गीतों में
अनुबंध
आदमखोर हवाएँ
कबिरा तेरी चादरिया
कुछ तेरे, कुछ
मेरे
गाँव
चारों धाम नहीं
चिरैया धीरे धीरे बोल
जीना हुआ कठिन
जोगी
दर्द अघोरी
पुरुषार्थ
बादल का पानी
भोर तक
मौन हो गए
यामिनी गाती है
सफलता खोज
लूँगा
समर्पित शब्द की रोली
हम हैं बहता पानी बाबा
संकलन में
नव
सुमंगल गीत गाएँ
महुए की डाली पर उतरा वसंत
बादल
का पानी
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सौ-सौ चीते
बची हुई साँसों पर आगे
जाने क्या कुछ बीते
एक हिरण पर सौ-सौ चीते
चलें कहाँ तक राह रोकती
सर्वस नाकामी
कहर मचाती, यहाँ-वहाँ तक
फैली सुनामी
नीलकंठ हो गये जगत का
घूँट हलाहल पीते!
सागर मंथन के अमृत पर
सबका दावा है
देव-दानवों के अंतर का
महज दिखावा है
सबने सुख संपत्तियाँ छीनी
हाथ हमारे रीते!
सूरज ऊगा किरणों की
उनको सौगात मिली
चाँद सितारे भी उनके थे
हमको रात मिली
जीते-जीते रोज मरे हम
मर-मर कर जीते।
एक हिरण पर सौ-सौ चीते!
१ अक्तूबर २०१२ |