अनुभूति में डॉ. अजय पाठक की
रचनाएँ- नए गीत-
उज्जयिनी में
कहो सुदामा
फागुन के दिन
जीने का अभ्यास
सौ-सौ चीते
गीतों में
अनुबंध
आदमखोर हवाएँ
कबिरा तेरी चादरिया
कुछ तेरे, कुछ
मेरे
गाँव
चारों धाम नहीं
चिरैया धीरे धीरे बोल
जीना हुआ कठिन
जोगी
दर्द अघोरी
पुरुषार्थ
बादल का पानी
भोर तक
मौन हो गए
यामिनी गाती है
सफलता खोज
लूँगा
समर्पित शब्द की रोली
हम हैं बहता पानी बाबा
संकलन में
नव
सुमंगल गीत गाएँ
महुए की डाली पर उतरा वसंत
बादल
का पानी
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कहो सुदामा
कहो सुदामा!
कैसे हो तुम ?
माली हालत भी सुधरी है
या फिर पहले जैसे हो तुम।
कहो तुम्हारे बाल सखा ने
कैसी आवभगत की
कुशलक्षेम से अवगत होकर
पूछा गाँव जगत की ?
उनकी आँखों में क्या देखा ?
अब भी क्या दो ‘पैसे’ हो तुम।
कुछ तो कहा सुना ही होगा
बरसों बाद मिले थे
उनकी बातों में अब तक भी
शिकवे और गिले थे ?
उन्होंने क्या यह भी पूछा
क्योंकर अब तक ‘ऐसे’ हो तुम।
मनोयोग से वहाँ गये थे
क्या कुछ लेकर आये ?
पाये या फिर भिक्षाटन के
तांदुल भी दे आये
ठगे हुए से क्यों दिखते हो ?
दिखते जैसे तैसे हो तुम।
१ अक्तूबर २०१२ |