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दीपावली महोत्सव
२००४
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नव सुमंगल गीत गाएँ
एक दीपक तुम जलाओ
एक दीपक हम जलाएँ
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रश्मियों को आज फिर,
आकर अँधेरा छल न जाए,
और सपनों का सवेरा,
व्यर्थ हो निकल न जाए
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----------हम अँधेरों का अमंगल,
----------दूर अंबर से हटाएँ,
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एक दीपक तुम जलाओ,
एक दीपक हम जलाएँ
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आँधियाँ मुखरित हुई है,
वेदना के हाथ गहकर,
और होता है सबलतम,
वेग उनका साथ बहकर
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----------झिलमिलाती रश्मियों की,
----------अस्मिता को फिर बचाएँ,
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एक दीपक तुम जलाओ,
एक दीपक हम जलाएँ
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अब क्षितिज पर हम उगाएँ,
स्वर्ण से मंडित सवेरा,
और धरती पर बसाएँ,
शांति का सुखमय बसेरा
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----------हम कलह को भूल कर सब,
----------नव–सुमंगल गीत गाएँ,
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एक दीपक तुम जलाओ,
एक दीपक हम जलाएँ
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—डॉ अजय पाठक |
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चलो आज हम दीप
जलाएँ
चलो आज हम दीप जलाएँ
नहीं प्रशासन के परिसर में,
नहीं कलेक्टर के दफ़्तर में
नहीं प्रधानमंत्री के घर में,
नहीं राष्ट्रपति के परिसर में
राष्ट्र हेतु बलिदान हुए जो,
उन वीरों के आँगन–घर में
भारत भूमि के वन्दन हित,
राष्ट्रदेव के अभिनंदन हित,
जन जन में चेतना जगाएँ
चलो आज हम दीप जलाएँ
आज़ादी के उस प्रताप का
खून गिरा था जहाँ जहाँ पर,
राणा के चेतक की टापें
जहाँ जहाँ थीं पड़ीं, वहाँ पर
और बिलाव घास की रोटी
ले भागा था जिन कुंजों में,
नन्हीं भूखी राजकुमारी
बिलख रही थी खड़ी जहाँ पर
हल्दी घाटी की पस्ती पर,
आज़ादी की उस धरती पर,
चलो आज आरती सजाएँ
चलो आज हम दीप जलाएँ
लक्ष्मीबाई का घोड़ा था,
ठिठका जहाँ नदी के तट पर
जहाँ शिवाजी कैद हुए थे
उस कारागृह की चौखट पर
वीर भगतसिंह की मजार पर,
अशफाक–ओ–आज़ाद के घर पर
कुंअर सिंह ने गलित बाँह वह
काटी थी जिस गंगा तट पर
राजगुरु–सुखदेव मही पर,
दुर्गा भाभी की देहरी पर
बिस्मिल की उस विस्मृत भू पर,
औ सुभाष की वीर–प्रसू पर
आज़ादी का प्रण दुहाराएँ
चलो आज हम दीप जलाएँ
जलियाँवाला की धरती पर,
लहू लुहान लाल परती पर
शिशु को गोद लिए अबलाएँ,
कट–कट गिर गईं मही पर
शीश कटा पर झुका नहीं,
उन शीशगंज के गुरुद्वारों पर
नन्हे शिशु चुन गए जहाँ,
उन अत्याचारी दीवारों पर
कारगील के उन शिखरों पर,
जहाँ खून ताज़ा है अब भी
वीरगति को प्राप्त हुए जो,
हर जवान के दरवाज़ों पर
राष्ट्रदेव की प्राण–प्रतिष्ठा में
उनकी आरती सजाएँ
चलो आज हम दीप जलाएँ
—सुरेन्द्र नाथ तिवारी
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