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अनुभूति में डॉ. अजय पाठक की रचनाएँ-

नए गीत-
उज्जयिनी में
कहो सुदामा
फागुन के दिन
जीने का अभ्यास
सौ-सौ चीते

गीतों में
अनुबंध
आदमखोर हवाएँ
कबिरा तेरी चादरिया
कुछ तेरे, कुछ मेरे
गाँव
चारों धाम नहीं
चिरैया धीरे धीरे बोल
जीना हुआ कठिन
जोगी
दर्द अघोरी
पुरुषार्थ
बादल का पानी
भोर तक
मौन हो गए
यामिनी गाती है

सफलता खोज लूँगा
समर्पित शब्द की रोली
हम हैं बहता पानी बाबा

संकलन में
नव सुमंगल गीत गाएँ
महुए की डाली पर उतरा वसंत
बादल का पानी

  दर्द अघोरी

दर्द अघोरी बड़े भोर से
अलख जगाये जोर शोर से।

आँखे रक्तिम और साँस में
मद की गंध समायी
पड़ा माँस का टुकड़ा भू-पर
हड्डी पड़ी चबायी

हिंसक लगता पोर-पोर से।

भिक्षापात्र बढ़ाकर बोले
इसमें कुछ तो डाल
चीर कलेजा रख दे या फिर
अपना लहू निकाल

ज्वाला फूटे कोर-कोर से।

मरघट की निष्प्राण चिता से
उठती है लपटें
जली देह को श्वानों के दल
खाने को झपटें

धुआँ उठता ओर-छोर से।

१७ मई २०१०

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