अनुभूति में
अज्ञेय
की रचनाएँ-
गीतों में-
उड़ चल हारिल
प्राण तुम्हारी पदरज फूली
छंदमुक्त में-
चाँदनी जी लो
ब्रह्म मुहूर्त : स्वस्ति वाचन
वन झरने की धार
सर्जना के क्षण
सारस अकेले
हँसती रहने देना
संकलन में-
वसंती हवा-
वसंत आ गया
ऋतुराज आ गया
वर्षा मंगल-
ये मेघ
साहसिक सैलानी
ज्योति पर्व-
यह दीप
अकेला
गांव में अलाव -
शरद
क्षणिकाओं में
धूप, नंदा देवी, सांप, रात में गांव,
सोन मछली, कांपती है,
जाड़ों में
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प्राण तुम्हारी पदरज फूली
प्राण तुम्हारी पदरज फूली
मुझको कंचन हुई तुम्हारे चरणों की
यह धूली!
प्राण तुम्हारी पदरज फूली!
आई थी तो जाना भी था -
फिर भी आओगी, दुःख किसका?
एक बार जब दृष्टिकरों के पद चिह्नों की
रेखा छू ली!
प्राण तुम्हारी पदरज फूली!
वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी,
गीत शब्द का कब अभिलाषी?
अंतर में पराग-सी छाई है स्मृतियों की
आशा धूली!
प्राण तुम्हारी पदरज फूली!
२७ फरवरी २००२ |