वसंती हवा

वसंत आ गया
अज्ञेय

 

मलयज का झोंका बुला गया
खेलते से स्पर्श से
रोम-रोम को कंपा गया-
जागो-जागो
जागो सखि, वसंत आ गया जागो
पीपल की सूखी खाल स्निग्ध हो चली
सिरिस ने रेशम से वेणी बाँध ली
नीम के भी बौर में मिठास देख
हँस उठी है कचनार की कली
टेसुओं की आरती सजा के
बन गई वधू वनस्थली

स्नेह भरे बादलों से
व्योम छा गया
जागो-जागो
जागो सखि, वसंत आ गया जागो

चेत उठी ढीली देह में लहू की धार
बेंध गई मानस को दूर की पुकार
गूँज उठा दिग दिगंत
चीन्ह के दुरंत वह स्वर बार
"सुनो सखि! सुनो बंधु!
प्यार ही में यौवन है यौवन में प्यार।"

आज मधुदूत निज
गीत गा गया
जागो-जागो
जागो सखि, वसंत आ गया, जागो!

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