अनुभूति में
अज्ञेय
की रचनाएँ-
गीतों में-
उड़ चल हारिल
प्राण तुम्हारी पदरज फूली
छंदमुक्त में-
चाँदनी जी लो
ब्रह्म मुहूर्त : स्वस्ति वाचन
वन झरने की धार
सर्जना के क्षण
सारस अकेले
हँसती रहने देना
संकलन में-
वसंती हवा-
वसंत आ गया
ऋतुराज आ गया
वर्षा मंगल-
ये मेघ
साहसिक सैलानी
ज्योति पर्व-
यह दीप
अकेला
गांव में अलाव -
शरद
क्षणिकाओं में-
धूप, नंदा देवी, सांप, रात में गांव,
सोन मछली, कांपती है,
जाड़ों में
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धूप
सूप-सूप भर
धूप-कनक
यह सूने नभ में गयी बिखर।
चौंधाया
बीन रहा है
उसे अकेला एक कुरर।
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नंदा देवी
निचले
हर शिखर पर
देवल :
ऊपर
निराकार
तुम
केवल
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रात में गाँव
झींगुरों की लोरियाँ
सुला गयीं थी गाँव को,
झोपड़े हिंडोलों सी झुला रही हैं
धीमे धीमे
उजली कपासी धूम डोरियाँ।
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सोन मछली
हम निहारते रूप,
काँच के पीछे
हांफ रही है मछली।
रूप तृषा भी
(और काँच के पीछे)
है जिजीविषा। |
काँपती है
पहाड़ नहीं काँपता,
न पेड़, न तराई,
काँपती है ढाल पर के घर से
नीचे झील पर झरी
दिये की लौ की
नन्हीं परछाईं।
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साँप
साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ-(उत्तर दोगे)
तब कैसे सीखा डँसना
विष कहाँ पाया?
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