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प्रकृति से सीख
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छंदमुक्त में-
कभी कभी
तुम्हें क्या याद आया
तेरा मेरा साथ
बदलाव
भ्रम
यह वादा करो

 

  तेरा मेरा साथ

छाँव छम्म से
कूद कर
वृक्षों से
स्वागत करती है...
धूप के मुसाफ़िर का।

जिसके,
चेहरे की रंगत
हो गई तांबे रंग-सी
जिस्म बुझे अलाव-सा।

और...कहती है
ऐ! मुसाफ़िर दो घड़ी मेरे पास आ
सहला दूँ, ठंडी साँसों से-
तरोताज़ा कर दूँ तुम्हें,
चहकते, महकते
बढ़ सको अपनी मंज़िल की ओर।
फिर पूछा...
जीवन के किसी मोड़ पर
तुम्हारा मेरा
सामना हुआ,
तो...
तुम
पहचान लोगे मुझे?

पगली सामना कैसे?
पहचानना कैसे?
तेरा मेरा
जन्म जन्मांतर
हर पल-क्षण का है साथ
प्राकृत आत्मिक
वह मुस्कराया...

इतना सुन छाँव---
पेड़ की टहनियों में छुप कर
निहारने लगी...
धूप के मुसाफ़िर
अपने पथदर्शक के
पाँव के निशाँ।

२२ दिसंबर २००८

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