अनुभूति में
डॉ.
सुधा ओम ढींगरा की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
चाँदनी से नहाने लगी
प्रकृति से सीख
पूर्णता
बेबसी
मोम की गुड़िया
छंदमुक्त में-
कभी
कभी
तुम्हें क्या याद आया
तेरा मेरा साथ
बदलाव
भ्रम
यह वादा करो
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कभी-कभी
कभी-कभी
मन की उद्वेलना
मस्तिष्क में स्मृतियों को
स्पंदित... उत्तेजित... झंकृत कर
रतजगा है करवाती।
हृदय की पोटली में बँधे
एहसास, अनुभूतियाँ, स्पर्श
खुल-खुल कर
विचलित हैं करते।
पुराने जर्जर
पीले पड़े पत्र
उद्धव का संवाद से
गोकुल में भटकती
ग्वालिन के
व्यथित हृदय
पीड़ित मस्तिष्क में
नई संचेतना
संचारित हैं करते।
ऐसे में
कल्पना. . . सोच
मन में तुम्हें करीब पा
अपनी वेदना की पीड़ा
से निवृत्ति हूँ पाती।
२२ दिसंबर २००८ |