बदलाव
सूखे पत्तों को उड़ते देख
ऋतु ने प्रश्न किया--
क्या तुम्हें मेरे साथ की
इच्छा नहीं रही?
पत्तों ने कहा--
हम तो बूढ़े, बेकार हो गए।
सोचा,
क्यों ना बिखर कर
राख हों जाएँ।
इसी बहाने
अपनी जननी से
मिलने की ललक
पूर्ण हो जाए।
शायद उसके
नव प्रजन्न में
सहायक हो सकें।
सुनते ही
ऋतु भी इठलाती
रंग बदलने लगी।
२२ दिसंबर २००८ |