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अनुभूति में श्रद्धा जैन की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
अपने हर दर्द को
कहाँ बनना सँवरना
किसी उजड़े हुए घर को

जब कभी मुझको
जैसे होती थी किसी दौर में

अंजुमन में-
अच्छी है यही खुद्दारी
अफ़साना ए उल्फ़त
कितना है दम चिराग में
किसने जाना
घटा से घिर गई बदली
गम बढ़ा दीजिए
मुश्किलें आई अगर

  कितना है दम चिराग में

कितना है दम चराग़ में, तब ही पता चले
फानूस की न आस हो, उस पर हवा चले

लेता हैं इम्तिहान अगर, सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ, कोई रहनुमा चले

नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा-ए-अमनो-वफ़ा चले

चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिलसिला चले

खंजर लिए खड़ें हों अगर मीत हाथ में
'श्रद्धा' बताओ तुम वहाँ फ़िर क्या दुआ चले

१ जून २००९

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