अनुभूति में
श्रद्धा जैन की रचनाएँ
नई
रचनाओं में-
अपने हर दर्द को
कहाँ बनना सँवरना
किसी उजड़े हुए घर को
जब कभी मुझको
जैसे होती थी किसी दौर में
अंजुमन में-
अच्छी है यही खुद्दारी
अफ़साना ए उल्फ़त
कितना है दम चिराग में
किसने जाना
घटा से घिर गई बदली
गम बढ़ा दीजिए
मुश्किलें आई अगर
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अपने हर दर्द को
अपने हर दर्द को अशआर में ढाला
मैंने
ऐसे रोते हुए लोगों को संभाला मैंने
शाम कुछ देर ही बस सुर्ख़ रही, हालांकि
खून अपना तो बहुत देर उबाला मैंने
बच्चे कहते हैं कि एहसान नहीं फ़र्ज़ था वो
अपनी ममता का दिया जब भी हवाला मैंने
कभी सरकार पे, किस्मत पे, कभी दुनिया पर
दोष हर बात का औरों पे ही डाला मैंने
लोग रोटी के दिलासों पे यहाँ बिकते हैं
जब कि ठुकरा दिया सोने का निवाला मैंने
आप को शब् के अँधेरे से मुहब्बत है, रहे
चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने
आज के दौर में सच बोल रही हूँ 'श्रद्धा'
अक्ल पर अपनी लगा रक्खा है ताला मैंने
४ अप्रैल २०११
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