अफ़साना-ए-उल्फ़त
अफ़साना-ए-उल्फ़त है, इशारों से कहेंगे
गर तुम न सुनोगे, तो सितारों से कहेंगे
हम सिद्क़-ओ-इबादत से कभी
अज़्म-ओ-अदा से
बस अहद-ए-मोहब्बत, इन्हीं चारों से कहेंगे
आगोश में मिल जाए समंदर जो
वफ़ा का
हम अलविदा दुनिया के, किनारों से कहेंगे
चेहरे से चुराओगे जो
सुर्खी-ए-तब्ब्सुम
क़िस्सा उड़ी रंगत का, बहारों से कहेंगे
आँखों में हैं जल जाते, वफाओं
के जो जुगनू
जज़्बात ये 'श्रद्धा' के, हज़ारों से कहेंगे
१ जून २००९ |