घटा से घिर गई
बदली घटा से घिर गई
बदली, नज़र नहीं आती
बहा ले नीर तू उजली, नज़र नहीं आती
हवा में शोर ये कैसा सुनाई
देता है
कहीं पे गिर गई बिजली नज़र नहीं आती
है चारों ओर नुमाइश के दौर जो
यारों
दुआ भी अब यहाँ असली नज़र नहीं आती
चमन में खार ने पहने, गुलों
के चेहरे हैं
कली कोई कहाँ, कुचली नज़र नही आती
पहाड़ों से गिरा झरना तो यूँ
ज़मीं बोली
ये दिल की पीर थी पिघली नज़र नही आती
१ जून २००९ |